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sureshjain.com2023-07-06T22:12:10+05:30

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध
इसका ध्यान आठो याम है
चलना हमारा काम है
इस विशद विश्वप्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ
मुझपर विधाता वाम है


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