हालात बिगड़ने लगे तुम बिछड़ने लगे हम दोनों को हालातो से लड़ना था, तुम हमसे लड़ने लगे
29Nov
Read more...
कुछ आस थी कभी, कभी कुछ वहम था एक दरिया सा और एक विशाल सागर सा वो आस भी ले डूबी और वहम भी ले डूबा कभी गहरी आग सा तो कभी गहरे पानी सा ...
ख्वाहिशों के पिटारे पर ज़िम्मेदारी की आरी चल जाती है, जबतक समझता है वो कर्मों को तबतक उम्र ढल जाती है..!!
मयस्सर तुम्हारा साथ होता तो श्रंगार के चारचांद लगा देता, और ना बांध पाती अगर तुम साड़ी, तो पल्लू मैं बना देता..!!
ज़िन्दालाश बना देने वाली, समय की मार से अंंजान था मैं, रूह सहमी थी परिस्थितियां देखकर, जिस्म से बेजान था मैं..