“मां नहीं है”
पीहर के Gate पर पहुंचते ही
मां, मां, मां
का शोर करते हुए अंदर घुसना
अब थम सा गया है
क्योंकि मां नहीं है
कुछ अपनी कुछ पराई बातें होती थीं
कुछ जुबान से तो कुछ आंखों ही आंखों में
समझ जाती थी
अब कहने को कुछ नहीं है
क्योंकि मां नहीं है
आपके गोद में सिर रखकर सोना
आपका अपना जादुई हाथ फेर देना
ऐसा लगता था मानो
आपने फिर एक बार सारी
जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले ली हों
अब सब बहुत याद आता है
क्योंकि मां नहीं है
आप दूर रहकर भी साथ थीं
मिलने की एक आस थी
किससे कहूं मन की बातें
आपकी हां हूं भी सुनाई नहीं देती है
क्योंकि मां नहीं है
आपके होते हुए वहां जाना
जितना सुखद था
बेमन से वापस आकर
वहीं की यादों में खोए रहना
उतना ही दुखद
अभी भी आंखें मां को ढूंढती हैं
क्योंकि वहां मां की तस्वीर है
अब “मां “नहीं है