टूटते पुल, धंसती सड़कें,
टपकती छतें, बेपटरी ट्रेनें,
बंद नाले, डूबते बेसमेंट
झकझोर रहे हैं सब
अब तो जागो कम से कम
जनता हो तुम जागीर नहीं
किसी रजवाड़े की
वोट जो देते रहोगे
भ्रष्ट, निर्लज्ज, अक्षम
प्रतिनिधियों को
धर्म और जाति के नाम पर
मरते रहोगे यूंही सब के सब