जीवन को बहुत क़रीब से देखने के बाद अब मैं हमेशा तैयार रहता हूँ, जो छूटना है छूटे, जो टूटना है टूटे, मैं अपने दोनों हाथों को हमेशा खुला रखता हूँ, जिसका जब तक मन करे अपना हाथ इन हाथों पर धरे या इन हाथों को पकड़ा रहे और जब इच्छा हो या मन भर जाए तो निकल जाए, मैं अब अपनी मुट्ठी कभी बंद नहीं करता, मैं अब कुछ भी नहीं पकड़ता


