sureshjain.com2024-08-27T18:35:18+05:30 "मर्यादाओं" के सारे द्वार तब शर्मशार हो जाते हैं, जब "दुशासन" जैसे महानीच अस्मत को ढाल बनाते हैं, और वो महिमा थी द्वापर की, जो लाज बची थी "द्रौपदी" की, अब कौरव निर्वस्त्र भी कर दें तब भी "कृष्ण" नहीं आते हैं..!! विरक्ति