हज़ारो ठोकरें खाकर भी नाबाद बैठी हूँ मैं जहाँ कल थी, वही पर आज बैठी हूँ अँधेरों से नहीं शिकवा, नहीं क़िस्मत से नाराजगी कोई किस्मत को भी सँभाल लूँगी मैं, अब ये ठान बैठी हूँ छोड़ा हैं कई गैरो ने, कई अपनो ने भी रवाना किया मैं ख़ुद को ही अपना मगर अब मान बैठी हूँ ..