जितनी शिद्दत से तुझे चाहा था
तूझे भूलने में उतनी ही ज़हमत उठानी पड़ रही है..
तुमने तोड़ा है इतने टुकड़ों में मुझे तुम क्या जानो खुद को समेटने में कितनी मशक्कत उठानी पड़ रही है..
ना रातों को चैन है ना दिन को सुकून
तुम क्या जानो मेरे मन को जीने में कितनी जिल्लत उठानी पड़ रही है..!!