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sureshjain.com2024-04-10T18:25:48+05:30
मैंने
गुलाब की
मौन शोभा को देखा !

उससे विनती की
तुम अपनी
अनिमेष सुषमा को
शुभ्र गहराइयों का रहस्य
मेरे मन की आंखों में
खोलो !

मैं अवाक् रह गया !
वह सजीव प्रेम था !

मैंने सूंघा,
वह उन्मुक्त प्रेम था !
मेरा हृदय
असीम माधुर्य से भर गया !

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