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sureshjain.com2024-03-22T10:39:07+05:30
कृष्ण में लीन मीरा
कृष्ण-प्रेम में मग्न है रहती
सुधबुध है खोई अपनी
बावरी कृष्ण-भजन में डूबी रहती

दरस की अभिलाषी मीरा
विष को भी अमृत मान है पी लेती
मोह कहाँ है उसे इस जग से
हर साँस वो गिरधारी को समर्पित करती

ऐसी है दर्श दिवानी मीरा
एक बस कृष्ण-कृष्ण ही जपती रहती।

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