सारे जग की उम्मीदों से
निज स्वार्थ बड़े जब हो जायें
पद हेतु, शत्रु के पाले में 
कुछ मित्र खड़े जब हो जायें
तब दिल पर पत्थर रखकर
उनसे हाथ छुड़ाना पड़ता है
निज संबंधों को भूल 
पार्थ को शस्त्र उठाना पड़ता है
फंस गया तुम्हारा रथ कविवर
अब इसे खेंच न पाओगे
विक्रेता हो तुम बहुत कुशल
पर गोबर बेच न पाओगे