पिताजी के बाहर जाने पर मां कभी किवाड़ तुरंत बन्द नहीं करती थीं. खुली छोड़ देती थीं सांकल कभी कभी पिताजी कुछ दूर जाकर लौट आते थे कहते हुए.. कि कुछ भूल गया हूं और मुस्कुरा देते थे दोनों... मां ने सिखाया... किवाड़ की खुली सांकल किसी के लौटने की एक उम्मीद होती है...