मन करे कभी कुछ अच्छा करने का, तो हांथ किसी विधवा का थाम लेना, किसी बेसहारा अभागी स्त्री कि, मांग फिर से तुम संवार देना, और ये कैसा समाज है जो बेटे को, दूसरे विवाह के लिए हां कहता है, वहीं दिखाकर डर घर कि इज्ज़त, मर्यादा का, बहू से उसकी "मांग" का हक छीन लेता है..!! विरक्ति