29
Jul
ये आईने कभी आँखों को पढ़ नहीं पाते ये लबों की हँसी से आगे बढ़ नहीं पाते है जिनके दम से ज़माने में रंग और ख़ुश्बू वो फूल अपने ही काँटों से लड़ नहीं पाते मालविका हरिओम
Jul
ये आईने कभी आँखों को पढ़ नहीं पाते ये लबों की हँसी से आगे बढ़ नहीं पाते है जिनके दम से ज़माने में रंग और ख़ुश्बू वो फूल अपने ही काँटों से लड़ नहीं पाते मालविका हरिओम