ये तो बस हम ही जानते हैं उम्र कैसे गुज़ारी है,बगैर तेरे गुज़रता लम्हा आख़िर कितना भारी है

धूप तो धूप है इसकी शिकायत कैसीअबकी बरसात में कुछ पेड़ लगाना साहब ~ निदा फ़ाज़ली

वो गालियाँ देकर अघाता नहींसंस्कार मेरा भी जाता नहीं

जिन्हें हालात से आता है टकराना, उनको मुसीबत भी खुशी की तरह लगती है…

लिया नहीं दरियाओं का एहसान क़भी,मैं कुआं खोद के पानी पीता आया हूँ।