इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

आते नहीं हैं लोग असल किरदार में कभी, यहाँ एक से बढ़कर एक अदाकार हैं सभी

मेरा संघर्ष एक दिन मुस्कुरायेगा, पाँव से काँटा ख़ुद ही निकल जायेगा

तोड़ कर मैं सारे बंधन,परिंदा हो जाऊँजी चाहता है फ़िर से, मैं ज़िन्दा हो जाऊँ

आंधियों को आख़िर ज़िद छोड़ना पड़ादम उनका निकाल दिया इक चराग़ ने