ज़िन्दगी का मामला भी अजीब है साहब.. ठोकर देकर संभालना सिखाती है..!!

कीमत दोनों को चुकानी पड़ती है, बोलने की भी और चुप रहने की भी....

जब नादान थे तो जिंदगी के मजे लेते थे, समझदार हुये तो जिंदगी मजे ले रही है ..!!

जिन्हें पिता की नसीहतें और घर की मुसीबतें याद हैं, वे भूलकर भी गलत रास्ते नहीं जाते । प्रह्लाद पाठक

दीप मंदिर के हों या दरगाह के, हम फक़त रौशनी ही चाहते हैं.
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