अपने पिता के काम पर कभी मत शर्माना, वो शर्म खो देते है, तुम्हारी अच्छी ज़िंदगी बनाने के लिए

जानवर इंसान नहीं बन पाते, इंसान जानवर कैसे बन जाते हैं....

ताश में जोकर और अपनों, की ठोकर अक्सर बाज़ी घुमा देते हैं....

पैसा बोलता है लेकिन अफ़सोस, कोई इसका ग्रामर चेक नहीं करता.

निन्दा का सत्य भी झूठ लगता है, जबकि प्रशंसा का झूठ सत्य सा मालूम होता है। ओशो
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