किताबें पढ़ो तो औरते कमजोर, और दीवारें पढ़ो तो मर्द कमजोर...

जाने किस हुनर से ख़ुदा हो जाते हैं लोग एक हम हैं कि सलीके के इंसाँ न हो सके

मैंने झूठ के बहाने नहीं बनाए, इसलिए भी हम बहुत ज़्यादा उसको नहीं भाए, मेरा सच ही मेरी ज़िंदगी है, जिसको निभाना है निभाए, जिसको नहीं निभाना ना निभाए.

जिंदगी जला ली हमने जैसी जलानी थी, शाहब अब धुएं पे तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी..!

बलात्कार को 'पाशविक' कहा जाता है , पर यह पशु की तौहीन है, पशु बलात्कार नहीं करते। सुअर तक नहीं करता, मगर आदमी करता है। हरिशंकर परसाई
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