आज के जीवन का सीधा सा परिचय है… आंसू वास्तविक और मुस्कान अभिनय है…!!

हर दिन होता "चीर" हरण है, तुम कितनी "द्रौपदी" बचाओगे, इन "कौरव" की औलादों पर, अब तुम कब "चक्र" चलाओगे..!! विरक्ति

दिलों के ताले की चाबी लफ्ज़ में नहीं लहजे में होती है !

कितना बचा के रखते हैं हम समाज में अपनी छवि को, जबकि बचाना हमें हमारे विचारों और कर्मों को चाहिए अर्चना अनिरुद्ध

तकलीफ देता है, इस कदर सच्चा होना अब अच्छा नहीं लगता! यूं अच्छा होना
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