हम मान ही नहीं सकते की पुरूषों की भीड़ ने दो स्त्रियों को निवस्त्र कर दिया,
काश!..वहाँ एक भी पुरुष होता.
जैसे जैसे दुनियां समझ में आती हैविश्वास शब्द खोखला लगने लगता है !
गिद्धों कि तरह नोचा है अस्मत भी उनकी लूटी है,
इस देश में यत्र नार्यस्तु पूज्यंते कि सारी रस्में झूठी हैं,
और राम करे रक्षा सीता की, कृष्ण द्रौपदी का चीर बढ़ाते हैं,
कलयुग के हैं देव विलुप्त इसलिए सब "नं'गा नाच" कराते...
“मनुष्य का ह्रदय अभिलाषाओं का क्रीडा स्थल और कामनाओं का आवास है”
मुंशी प्रेमचंद
माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगीं तोय॥
कबीरदास