ये आईने कभी आँखों को पढ़ नहीं पाते
ये लबों की हँसी से आगे बढ़ नहीं पाते
है जिनके दम से ज़माने में रंग और ख़ुश्बू
वो फूल अपने ही काँटों से लड़ नहीं पाते
मालविका हरिओम
तू कितनी कठिन है ज़िंदगी,,
कि तुझे पढ़ने के लिए,,
मुझे अपने स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी,,
कीर्ति चन्द्रा
ख्वाहिशों ने जब भी कोशिश की उड़ने की,
परिस्थितियों ने "पैरों" में बेड़ियां डाल दिया..!!
विरक्ति
ठोकरें खा कर भी न समझे तो मुसाफ़िर का नसीबवरना पत्थरों ने तो अपना फ़र्ज़ निभा दिया था !
अगर सोने का हिरण चाहेगी सीता
तो बिछड़ जायेंगे उसे राम ये तय है
चौदह वर्ष वनवास रहा
एक एक रात कटी रोते रोते
तब जाकर बार समझ में आई
सोने के हिरण नही होते