मुझे मालूम था मेरी मंज़िल "मौत" है,
फिर भी चाह "जीने" की करता रहा,

मुझे नहीं थी परख सही या ग़लत की,
मैं गुस्ताखी पर गुस्ताखी करता रहा,

और जब "जुदा" हुआ उनसे तब मैंने जाना,
सफ़र में तो वो थे "ठोकरें" मैं खाता रहा..!!