महरुमीयों की अपनी कोई इंतेहा नहीं ,
कभी चेहरा नही, तो कभी आईना नही ।
तुम जिस से कर रहे हो मेरे हक में बद्दुआ ,
मेरा भी है खुदा, वो फकत तुम्हारा नही ।