जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध
इसका ध्यान आठो याम है
चलना हमारा काम है
इस विशद विश्वप्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ
मुझपर विधाता वाम है