ये सोचना ग़लत है के’ तुम पर नज़र नहीं,
मसरूफ़ हम बहुत हैं, मगर बे-ख़बर नहीं

हम आपके इशारे पे घर-बार छोड़ दें ?
दीवाने हैं ज़रूर ! मगर इस क़दर नहीं !!

~ आलोक श्रीवास्तव