नत हूं मैं सबके समक्ष, बार-बार मैं विनीत स्वर
ऋण – स्वीकारी हूं – विनत हूं
मैं मरूंगा सुखी
मैंने जीवन की धज्जियां उड़ाई हैं।

~ अज्ञेय