रूद्र हुँ,महाकाल हुँ,मृत्यु रूप विकराल हुँ,
नित्य हुँ, निरंतर हुँ, शांति रूप मे शंकर हुँ,
शांति का श्रृंगार हुँ,
मै क्रोध का अंगार हुँ,
घनघोर अंधेरा ओढ़ के मै जन जीवन से दूर हुँ,
शमशान मे नाचता मै मृत्यु का गरूर हुँ,
शाम दाम तुम रखों
मै दण्ड मे सम्पूर्ण हुँ.