बस साथ निभाने की जो कसमें दिलाई गई थी
उसका बोझ है पर प्रेम नहीं है
अब यदि वो प्रेम की बात भी कर रहे है
तो वो इसलिए कि मजबूरी है
कि पति पत्नी है
गहराई में जाकर देखा जाय
तो वो सामाजिक बंधन ही मिलेगा
एक खानापूर्ति है कि साथ में जीवन काटना है
जबकि साथ में जीवन जीना होता है काटना नहीं