भटका हू जीवन कि राहो मे मंजिल कि कोई ठौर नही
एकाकी जीवन जीता हू मेरे पास खुशियां और नही
तुमको साथ ले चलू तो वह बात आन कि आती है
दुखदर्द, कष्ट तुम भी सहो तब बात सम्मान कि आती है
और न कोई हमसफर है मेरा ना ही कोई रहगीर है
उम्र बीतेगी कैसे साथ मेरे जब आशिक तेरा फकीर है .!