माँ एक बोझा लकड़ी के लिए क्यों दिन भर जंगल छानती, पहाड़ लाँघती, देर शाम घर लौटती हो? माँ कहती है : जंगल छानती, पहाड़ लाँघती, दिन भर भटकती हूँ सिर्फ़ सूखी लकड़ियों के लिए। कहीं काट न दूँ कोई ज़िंदा पेड़ !
02Mar
माँ एक बोझा लकड़ी के लिए क्यों दिन भर जंगल छानती, पहाड़ लाँघती, देर शाम घर लौटती हो? माँ कहती है : जंगल छानती, पहाड़ लाँघती, दिन भर भटकती हूँ सिर्फ़ सूखी लकड़ियों के लिए। कहीं काट न दूँ कोई ज़िंदा पेड़ !