मुहब्बत की निशानी ख़ाक करके, ज़ख्म छुवन के कहानी कह रहे। गलियों में छिपकर बहा करती थी, समंदर में मौज ए रवानी कह रहे।
28Dec
मुहब्बत की निशानी ख़ाक करके, ज़ख्म छुवन के कहानी कह रहे। गलियों में छिपकर बहा करती थी, समंदर में मौज ए रवानी कह रहे।