ये ढलती हुई शाम, करती है दीवानों का काम तमाम। बात गहरी है, गहराई से सोचना, कोई राह देखता है, तो कोई सरेराह देखता है।
17Dec
ये ढलती हुई शाम, करती है दीवानों का काम तमाम। बात गहरी है, गहराई से सोचना, कोई राह देखता है, तो कोई सरेराह देखता है।