ग़ुरूर में बन्दा खुद को 
हर इक से जुदा समझता है

अधूरा आदमी ख़ुद को 
ख़ुदा समझता है

अभी ख़मोश हूं तो 
ताअल्लुक़ की ज़िंदगी के लिए

ख़बर नहीं वो मेरी चुप्पी को
 क्या समझता है।