मुकद्दर कि चोट ऐसी खाई थी मैंने,
आज हर कदम पर फिसल रहा हूं,
कभी झूठे सुख, तो कभी झूठी हंसी लिये,
मैं किरदारों पर किरदार बदल रहा हूं..!!

विरक्ति